सुप्रीम कोर्ट के सभी जज अब अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करेंगे। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। यह फैसला 1 अप्रैल को हुई फुल कोर्ट मीटिंग में लिया गया, जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना समेत सभी 34 जज शामिल थे।
जजों की संपत्ति की घोषणा क्यों जरूरी हुई?
दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में मिले अधजले नोटों के बाद न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने की मांग उठी। इसी को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा फैसला लिया।
कौन-कौन जज देंगे अपनी संपत्ति की जानकारी?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में कुल 33 जज हैं (एक पद खाली है)। इनमें से 30 जज पहले ही अपने संपत्ति संबंधी दस्तावेज कोर्ट को सौंप चुके हैं। हालांकि, ये दस्तावेज अब तक सार्वजनिक नहीं किए गए थे।
वेबसाइट पर संपत्ति की जानकारी अपलोड होगी
- सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति का ब्योरा सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।
- यह प्रक्रिया स्वैच्छिक होगी, यानी जज अपनी मर्जी से संपत्ति की जानकारी साझा करेंगे।
- इससे आम जनता का न्यायपालिका पर भरोसा और मजबूत होगा।
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी कोशिशें
- 1997 में: तत्कालीन CJI जे एस वर्मा ने जजों से अपनी संपत्ति की जानकारी चीफ जस्टिस को देने के लिए कहा था, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।
- 2009 में: “न्यायाधीश संपत्ति और देनदारियों की घोषणा विधेयक” लाया गया, लेकिन इसमें जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने का प्रावधान नहीं था, इसलिए यह विधेयक पास नहीं हो सका।
- 2009 में: RTI और पारदर्शिता की मांग के कारण कुछ जजों ने अपनी संपत्ति की जानकारी खुद ही सार्वजनिक कर दी थी।
क्या है जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला?
- 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लग गई।
- दमकलकर्मियों को घर में जले हुए नोटों का ढेर मिला।
- घटना के बाद जस्टिस वर्मा से दिल्ली हाईकोर्ट ने कार्यभार वापस ले लिया।
- सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश के बाद उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया।
- हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को निर्देश दिया गया कि उन्हें कोई न्यायिक काम न सौंपा जाए।
- इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की एक इंटरनल कमेटी बनाई गई है।
इस फैसले से क्या होगा फायदा?
- न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ेगी।
- जनता का भरोसा मजबूत होगा।
- भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी।
यह फैसला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर आम जनता का भरोसा और मजबूत होगा।