दुनिया के सबसे चर्चित फिल्म समारोहों में से एक कांस फिल्म फेस्टिवल में इस बार छत्तीसगढ़ का नाम भी रोशन हुआ। दुर्ग की रहने वाली जूही व्यास ने पहली बार इस मंच पर न सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, बल्कि एक खास संदेश के साथ दुनिया का ध्यान खींचा।
जूही व्यास ग्रीनपीस इंडिया संस्था के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश लेकर रेड कार्पेट पर पहुंचीं। संस्था की राष्ट्रीय निदेशक मोहिनी शर्मा के साथ उन्होंने ‘वॉइस ऑफ द प्लैनेट’ अभियान के तहत एक खास ड्रेस पहनकर जलवायु परिवर्तन और धरती की पीड़ा को दर्शाया।
इस खास ड्रेस को वियतनाम के मशहूर डिजाइनर गुयेन टीएन ट्रिएन ने डिजाइन किया, जिसे तैयार करने में ढाई महीने लगे। यह ड्रेस ‘जलती हुई पृथ्वी’ की प्रतीक थी – आग जैसे रंग और डिजाइन इस बात की चेतावनी देते हैं कि अगर प्रदूषण यूं ही बढ़ता रहा तो हमारा भविष्य कैसा होगा।
“ये सिर्फ एक ड्रेस नहीं, बल्कि एक कहानी है” – जूही
दैनिक भास्कर से बात करते हुए जूही ने कहा,
“यह सिर्फ एक ड्रेस नहीं है, यह उन करोड़ों लोगों की कहानी है जो जलवायु संकट का खामोशी से सामना कर रहे हैं। एक मां होने के नाते मुझे अगली पीढ़ी के लिए धरती को बचाने की जिम्मेदारी और भी ज्यादा महसूस होती है।”
उन्होंने कहा कि वे चाहतीं तो स्टाइलिश ड्रेस पहनकर वहां जातीं, लेकिन उन्होंने इस मंच का इस्तेमाल धरती के दर्द को दिखाने के लिए किया।
“हवा, मिट्टी और पानी को बचाना इंसानों की जिम्मेदारी है, लेकिन इस पर कोई बात नहीं कर रहा,” जूही ने कहा।
कौन हैं जूही व्यास?
भिलाई निवासी जूही व्यास दो बच्चों की मां हैं। उन्होंने करियर की शुरुआत सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में की थी, लेकिन अपने जुनून को पहचानते हुए फैशन और मेकअप की दुनिया में कदम रखा।
करीब 12 साल पहले दुर्ग में उन्होंने ‘जूही सैलून एंड स्पा’ की शुरुआत की। जूही एक मेकअप आर्टिस्ट, मॉडल और कई ब्यूटी टाइटल की विजेता भी हैं।
- 2022 में ‘मिसेज इंडिया इंक’ में प्रथम रनर-अप रहीं।
- 2023 में कैलिफोर्निया में हुए ‘मिसेज ग्लोब’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया और ‘पीपल्स चॉइस’ अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
- 2024 में चीन में आयोजित ‘मिसेज ग्लोब’ प्रतियोगिता में जूही पहली भारतीय महिला थीं जो जूरी पैनल में शामिल हुईं।

कांस फिल्म फेस्टिवल का इतिहास(deshharpal.com)
कांस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत 1939 में हुई थी, जब वेनिस फिल्म फेस्टिवल की तानाशाही से तंग आकर फ्रांस ने खुद का फेस्टिवल शुरू किया। हालांकि उसी साल हिटलर के पोलैंड पर हमले के चलते पहले दिन ही फेस्टिवल रोकना पड़ा।
इसके बाद 1946 में यह फेस्टिवल फिर से शुरू हुआ और तब से आज तक यह दुनिया भर की फिल्मों और कलाकारों को एक ग्लोबल मंच देता आ रहा है।