देश हरपल न्यूज़ डेस्क
दिनांक: 30 मार्च 2025
राज्यसभा में शनिवार को वक्फ बोर्ड से जुड़ा ‘वक्फ अमेंडमेंट बिल 2023’ लंबी चर्चा के बाद पारित हो गया। करीब 12 घंटे तक चली बहस के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर नोकझोंक देखने को मिली।
बिल का मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी, प्रभावी और आधुनिक बनाना बताया गया है, लेकिन विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला करार दिया।
विपक्ष का तीखा विरोध
विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा:
“विपक्ष के सभी लोगों ने इस बिल को स्वीकार नहीं किया, इसका मतलब साफ है कि इसमें कई खामियां हैं। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ हर बार सही नहीं हो सकता। ये दान देने और लेने का मामला है, दान देने वाला किसी भी धर्म का हो सकता है। लेकिन आपने सिर्फ एक समुदाय को केंद्र में रखकर उनके हक छीनने की कोशिश की है।”
खड़गे ने यह भी कहा कि इस बिल में संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी की गई है और यह कदम ‘माइनॉरिटी राइट्स’ को कमजोर करता है।

सरकार का पक्ष: पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन

भाजपा अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद जेपी नड्डा ने बिल का समर्थन करते हुए कहा:
“हमें उम्मीद है कि सदन इस बिल का समर्थन करेगा। 2013 में जब इसी विषय पर UMEED बिल के लिए JPC बनी थी, उसमें केवल 13 सदस्य थे। लेकिन मोदी सरकार द्वारा गठित JPC में 31 सदस्य शामिल थे। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ आपकी बात मानना नहीं है, बल्कि तर्क और विचार-विमर्श के आधार पर निर्णय लेना होता है।”
उन्होंने कहा कि यह बिल वक्फ संपत्तियों की लूट और अनियमितता को रोकने के लिए लाया गया है, और इसका उद्देश्य किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं बल्कि सुधार और विकास है।
संजय राउत का हमला: “मुस्लिमों की इतनी चिंता जिन्ना ने भी नहीं की थी”
शिवसेना (UBT) के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“सरकार को मुस्लिमों की इतनी चिंता कब से होने लगी? आप तो कहते थे कि मुस्लिम जमीन और गले की चेन छीन लेंगे। 40 हजार कश्मीरी पंडितों की जमीन आज तक वापस नहीं मिली, और चीन हमारी जमीन पर कब्जा किए बैठा है। सरकार को असली चिंता उस जमीन की करनी चाहिए।”
राउत के इस बयान से सदन में कुछ देर के लिए माहौल गर्म हो गया, लेकिन इसके बावजूद बहस जारी रही।

बिल में क्या है खास?
- वक्फ संपत्तियों की रिकॉर्डिंग और डिजिटाइजेशन अनिवार्य।
- विवादित संपत्तियों के लिए स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया।
- राज्य वक्फ बोर्डों के अधिकारों का पुनर्संरचना।
- निजी दानदाताओं के अधिकारों और संपत्ति के संरक्षण पर ज़ोर।
निष्कर्ष:
वक्फ अमेंडमेंट बिल 2023 राज्यसभा से पारित हो चुका है लेकिन इसके खिलाफ विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। एक तरफ सरकार इसे सुधारवादी और पारदर्शी कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संवैधानिक मूल्यों और अल्पसंख्यक अधिकारों पर कुठाराघात मान रहा है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बिल के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव कैसे सामने आते हैं।
देश हरपल इस मुद्दे पर आपकी राय जानना चाहता है। क्या यह बिल वाकई पारदर्शिता के लिए लाया गया है या फिर अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चोट?
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