देश की अगली Census अब सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगी — यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को एक नई पारदर्शिता के साथ दुनिया के सामने लाएगी। केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए घोषणा की है कि अब जातीय आंकड़ों की गिनती भी मुख्य जनगणना का हिस्सा होगी।
यह फैसला न केवल सरकार की सोच में बदलाव दर्शाता है, बल्कि देश की करोड़ों जातियों और उपजातियों को पहली बार मुख्य धारा के डेटा में लाने की कोशिश भी है।
अब हर जाति की होगी गिनती, खुलेगा असली सामाजिक चित्र
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को प्रेस वार्ता में कहा कि कैबिनेट ने यह निर्णय लिया है कि आगामी Census में अब जातीय विवरण भी दर्ज किया जाएगा। उन्होंने साफ कहा,
“समाज में बहुत सारी योजनाएं जातीय आधार पर बनती हैं, लेकिन ठोस आंकड़े नहीं होने के कारण असली लाभार्थी वंचित रह जाते हैं।“
अब पहली बार केंद्र सरकार यह जिम्मेदारी खुद उठाकर एक भरोसेमंद जातीय डेटा उपलब्ध कराएगी।
राज्यों के जातीय सर्वे को बताया ‘राजनीतिक नाटक’
मंत्री ने कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में हुए जातीय सर्वेक्षणों को लेकर सवाल उठाए। उनका कहना था कि ये सर्वे राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित थे और इनमें पारदर्शिता की भारी कमी रही।
केंद्र सरकार का मानना है कि जब तक जातीय Census पूरे देश में एकसमान रूप से नहीं होगी, तब तक इसके आधार पर नीति बनाना गलत होगा।
क्यों है यह फैसला ऐतिहासिक?
- 1931 के बाद पहली बार जातियों की इतनी व्यापक गिनती की जाएगी।
- 2011 की SECC (Socio-Economic and Caste Census) के डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया था — इस बार पारदर्शिता का वादा किया गया है।
- संविधान के अनुसार जनगणना केंद्र का विषय है, जिसे अब पूरी गंभीरता से लिया जा रहा है।
जातीय आंकड़े क्यों ज़रूरी हैं?
भारत एक विविधता से भरा देश है। हर क्षेत्र, हर गाँव और हर समुदाय में अलग-अलग सामाजिक परतें हैं। लेकिन जब योजनाएं बनती हैं, तो बिना आंकड़ों के सिर्फ अनुमान के आधार पर फैसले होते हैं।
अब जातीय Census के जरिए सरकार को यह स्पष्ट जानकारी मिलेगी कि कौन पीछे रह गया है, और किसे वास्तव में मदद की जरूरत है।
आम जनता की आवाज को मिलेगा प्लेटफॉर्म
यह कदम उन लोगों के लिए भी उम्मीद की किरण बनकर आया है जो लंबे समय से कहते आए हैं कि — “हमें गिना नहीं जाता, तो हमें क्यों माना जाएगा?”
अब जातियों की पहचान और उनकी समस्याएं सिर्फ राजनीति का मुद्दा नहीं रहेंगी, बल्कि नीति और समाधान का हिस्सा बनेंगी।
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