लेख की मुख्य बातें:
- सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है।
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद, AIMPLB और विपक्षी पार्टियों ने बिल को मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी पर हमला बताया।
- देशभर में विरोध, मणिपुर में हिंसा, और विधानसभा में हंगामा तक हुआ।
क्या है मामला?
5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को मंज़ूरी दी, जिसके बाद सरकार ने इसकी अधिसूचना भी जारी की। सरकार का दावा है कि इस कानून का मकसद वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता सुनिश्चित करना है और अतिक्रमण को रोकना है।

सुप्रीम कोर्ट की दखल
7 अप्रैल को CJI संजीव खन्ना ने इस मामले में सुनवाई की सहमति दी। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, RJD, और कई अन्य संगठनों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। उनका तर्क है कि यह कानून मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का हनन है।
राज्यों में विरोध और तनाव
- मणिपुर में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के घर में आगज़नी की गई।
- जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायकों ने कानून की प्रति फाड़ी और जमकर हंगामा हुआ।
- असम, कर्नाटक, बिहार (जमुई) समेत कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन किए।
धार्मिक संगठनों का रुख
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस कानून को चुनौती दी है और 11 अप्रैल से राष्ट्रव्यापी विरोध का एलान किया है।
- AIMPLB ने सभी समुदाय-आधारित संगठनों से एकजुट होकर आंदोलन की अपील की है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
- राहुल गांधी ने बिल को “मुसलमानों पर हमला” बताया।
- मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे संविधान विरोधी करार दिया।
- महबूबा मुफ्ती और रूहुल्लाह मेहदी ने इसे “अल्पसंख्यकों की संस्था पर हमला” बताया।
विवाद की जड़ क्या है?
बिल में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है, जिससे अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति भी संभव हो सकेगी। इससे धार्मिक संगठनों में रोष है, क्योंकि उनका मानना है कि वक्फ की संपत्तियाँ सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं।
विश्लेषण
यह विवाद न सिर्फ धार्मिक भावना से जुड़ा है, बल्कि इसमें संवैधानिक अधिकार, भूमि स्वामित्व, और सांप्रदायिक संतुलन भी सवालों के घेरे में हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मुद्दे पर आने वाले समय में निर्णायक हो सकता है।
निष्कर्ष
भारत में वक्फ अधिनियम को लेकर उबाल है। यह केवल एक क़ानून नहीं, बल्कि धर्म, राजनीति, और समाज के जटिल संबंधों की गहराई को दर्शाता है। आने वाले दिन इस विषय पर और गर्माहट ला सकते हैं।