Controversial Statement Again by SP MLA Indrajeet Saroj:
Desh Harpal | 15 अप्रैल 2025 | उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर विवाद की चिंगारी सुलग उठी है। Samajwadi Party के कद्दावर नेता और मौजूदा विधायक इंद्रजीत सरोज ने एक विवादित बयान देकर सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। पहले मंदिरों और हिंदू देवी-देवताओं को लेकर दिये गए उनके पुराने बयान ने खूब तूल पकड़ा था, और अब एक बार फिर उन्होंने अपने उसी बयान को दोहराते हुए कहा है – “अगर भगवान चाहते तो मुसलमानों को श्राप दे देते और वे भस्म हो जाते।”
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, इंद्रजीत सरोज का ये बयान तब आया जब उनसे मीडिया ने उनके पुराने बयान पर प्रतिक्रिया मांगी, जिसमें उन्होंने कहा था कि “अगर भगवान वाकई होते तो वो मंदिरों को तोड़ने वालों को भस्म कर देते।” इस पर सफाई देने के बजाय इंद्रजीत सरोज ने और भी तीखा बयान दे डाला। उन्होंने कहा कि जब मुगलों ने मंदिर तोड़े, तब भगवान ने कुछ नहीं किया, इसका मतलब भगवान नहीं थे या फिर वो सिर्फ किताबों में हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि “अगर भगवान होते तो मस्जिदों में तो नहीं रहते, फिर मंदिरों में ही क्यों नहीं बचा पाए खुद को?” इस बयान ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और अब BJP समेत कई हिन्दू संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
सियासी घमासान
BJP नेताओं ने इस बयान को Hindu sentiments के खिलाफ बताया है और तुरंत माफी मांगने की मांग की है। वहीं, सोशल मीडिया पर भी इस बयान को लेकर ज़बरदस्त बवाल मचा है। कई users ने इंद्रजीत सरोज को “Hinduphobic” कहा है, तो कुछ ने उन्हें पार्टी से निकालने की मांग की है।
Akhilesh Yadav की चुप्पी पर सवाल
अब सवाल उठ रहा है कि क्या Samajwadi Party इस बयान से खुद को अलग करेगी या फिर Akhilesh Yadav इस पर चुप्पी साधे रहेंगे? क्योंकि पहले भी पार्टी के कुछ नेताओं के विवादित बयानों पर पार्टी ने कोई ठोस एक्शन नहीं लिया था।
Desh Harpal का विश्लेषण
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत जैसे विविधताओं वाले देश में धार्मिक भावनाएं बेहद संवेदनशील मुद्दा हैं। किसी भी राजनेता को ऐसा बयान देने से पहले यह सोचना चाहिए कि उसके शब्द समाज पर क्या असर डाल सकते हैं। इंद्रजीत सरोज का यह बयान सिर्फ राजनीतिक विवाद ही नहीं बल्कि समाज में वैमनस्य फैलाने वाला है।
Desh Harpal यह मानता है कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी जरूरी है। खासतौर पर उन नेताओं के लिए जो लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।