(Desh Harpal l News Desk):
BJP सांसद निशिकांत दुबे ने एक बार फिर Congress पर करारा हमला बोला है, लेकिन इस बार उनका निशाना बना एक ऐसा नाम जिसे लेकर राजनीति और न्यायपालिका के संबंधों पर गंभीर सवाल उठाए जा सकते हैं – Justice Baharul Islam.
निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया और संसद में Judicial Politics और Congress का ‘संविधान बचाओ’ ड्रामा – निशिकांत दुबे का तगड़ा वार की संविधान बचाओ मुहिम को ‘मजेदार कहानी’ बताते हुए तंज कसा कि Judicial Politics और Congress का ‘संविधान बचाओ’ ड्रामा – निशिकांत दुबे का तगड़ा वारही वो पार्टी है जो जब सत्ता में थी, तब उसने कैसे न्यायपालिका का अपने हिसाब से इस्तेमाल किया। उन्होंने Justice Baharul Islam का उदाहरण देते हुए कहा:
“1977 में जब इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे, तब Baharul Islam ने वह सभी केस तन्मयता से समाप्त कर दिए। इसके इनामस्वरूप कांग्रेस ने उन्हें 1983 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर करवा कर तीसरी बार राज्यसभा में भेज दिया।”
निशिकांत दुबे के इस बयान की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट से भी होती है, जहाँ के अनुसार:
- Baharul Islam ने 1951 में असम हाईकोर्ट में बतौर वकील पंजीकरण कराया था।
- 1958 में वे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट बने।
- 1962 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए और 1968 में फिर से राज्यसभा पहुंचे।
- इसके बाद 1972 में उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया और 1980 में वे सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बने।
- 1983 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा देकर सीधे कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार राज्यसभा में एंट्री ली।
निशिकांत दुबे ने इस इतिहास को उजागर करते हुए पूछा कि “क्या यही है कांग्रेस की न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा?”
कांग्रेस के संविधान बचाओ की एक मजेदार कहानी,असम में बहरुल इस्लाम साहिब ने कांग्रेस की सदस्यता 1951 में ली,तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस ने उन्हें 1962 में राज्यसभा का सदस्य बना दिया,छह साल बाद दुबारा 1968 में राज्य सभा का सदस्य सेवाभाव के लिए बनाया,इनसे बड़ा चमचा कॉग्रेस को नज़र…
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 22, 2025
इस बयान के जरिए BJP सांसद ने न केवल कांग्रेस की राजनीतिक नीयत पर सवाल उठाया, बल्कि वर्तमान में जारी Judiciary vs Politics बहस को भी एक नया मोड़ दे दिया है। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि ये पार्टी सिर्फ जब विपक्ष में होती है, तभी उसे संविधान और न्यायपालिका की याद आती है।
अब देखना ये होगा कि कांग्रेस इस गंभीर आरोप का क्या जवाब देती है। लेकिन इतना तो तय है कि Baharul Islam का यह केस एक बार फिर Judicial Appointments और Political Rewards के बीच की ‘Thin Line’ को लोगों के सामने ला रहा है।