Supreme Court ने बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में मिली ज़मानत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई बंद कर दी है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट यानी एनआईए अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है, इसलिए अब टॉप कोर्ट का हस्तक्षेप करना ठीक नहीं होगा।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि प्रज्ञा ठाकुर की ज़मानत रद्द की जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जब निचली अदालत इस पर फैसला देने वाली है, तो हम इसमें दखल नहीं दे सकते।”
सितंबर 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाकों में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। बम मोटरसाइकिल पर रखे गए थे। इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर को आरोपी बनाया गया था। उन्हें कई साल जेल में रहना पड़ा, फिर 2017 में उन्हें ज़मानत मिली। आज वे भोपाल से सांसद हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा कि एनआईए कोर्ट ने पूरी सुनवाई कर ली है और अब वो जल्द ही फैसला सुनाएगी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का दखल देना ज़रूरी नहीं है।
यह फैसला प्रज्ञा ठाकुर के लिए फिलहाल राहत भरा है, लेकिन असली फैसला एनआईए कोर्ट का होगा – जो ये तय करेगा कि वो दोषी हैं या नहीं।
यह मामला सिर्फ कानून की किताबों तक सीमित नहीं है। इसमें उन परिवारों की भी बात है जिन्होंने 2008 में अपनों को खोया। पिछले 16 सालों से वे इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। वहीं, प्रज्ञा ठाकुर, जो अब एक सांसद हैं, खुद को निर्दोष बताती रही हैं। अब सबकी निगाहें एनआईए कोर्ट के आखिरी फैसले पर टिकी हैं।