केंद्र सरकार द्वारा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करने के लिए गठित किए गए डेलिगेशन में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को शामिल करने के फैसले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। जहां एक ओर थरूर ने इस पहल का स्वागत किया है, वहीं कांग्रेस पार्टी के भीतर इस पर असंतोष की लहर दौड़ गई है।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की कूटनीतिक पहल
पिछले महीने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी, भारत सरकार ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत एक कूटनीतिक अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को वैश्विक मंचों पर उजागर करना है। इसके तहत, शशि थरूर के नेतृत्व में एक बहुदलीय डेलिगेशन को अमेरिका भेजा जाएगा, जिसमें मिलिंद देवड़ा और शंभवी चौधरी जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं।
कांग्रेस में असंतोष: जयराम रमेश और उदित राज की प्रतिक्रिया
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सरकार के इस कदम को “बेईमानी” करार देते हुए कहा कि पार्टी द्वारा प्रस्तावित चार सांसदों की सूची को नजरअंदाज कर शशि थरूर को शामिल किया गया है। उन्होंने इसे इंदिरा गांधी के कार्यकाल की एकतरफा नीतियों से तुलना करते हुए आलोचना की।
वहीं, कांग्रेस नेता उदित राज ने थरूर की पाकिस्तान के खिलाफ तीखी टिप्पणियों पर सवाल उठाते हुए पूछा, “क्या वे बीजेपी के प्रवक्ता बन गए हैं?” उन्होंने थरूर की पार्टी के प्रति निष्ठा पर भी संदेह जताया।
थरूर का पक्ष: राष्ट्रहित सर्वोपरि
शशि थरूर ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणियां व्यक्तिगत हैं और पार्टी की आधिकारिक नीति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। उन्होंने कहा, “मैं अपने देश के लिए बोलता हूं, और मुझे इस मिशन का हिस्सा बनने पर गर्व है।” थरूर ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें पार्टी की ओर से कोई औपचारिक चेतावनी नहीं मिली है।
बीजेपी का तंज: राहुल गांधी पर निशाना
बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए पूछा, “राहुल गांधी उन लोगों से नफरत क्यों करते हैं जो भारत के लिए बोलते हैं?” पार्टी ने थरूर को डेलिगेशन से बाहर रखने के कांग्रेस के फैसले पर सवाल उठाया और इसे राष्ट्रहित के खिलाफ बताया।
निष्कर्ष: कूटनीति बनाम राजनीति
शशि थरूर की डेलिगेशन में नियुक्ति ने एक बार फिर दिखाया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के मुद्दों पर भी राजनीतिक दलों के बीच मतभेद गहरे हैं। जहां एक ओर सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्षी दलों के भीतर इस पर असहमति और आंतरिक संघर्ष स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे है